हर धर्म हर मज़हब एक ही बात बताता है
सिखाता है
शान्ति व आनंद ही आस्तित्व का दूसरा नाम है
परन्तु इंसान अपने ही बनाये रास्तों में भटक जाता है
कभ कभी सोचता हूँ
क्या जड़ता आध्यात्मिक पथ के लिए ज्यादा सही है
क्या पर्वत,नदियाँ जड़ होके भी सजीव से बेहतर हैं
क्यूंकि ये हम इंसानों की तरह बहकते नहीं,भटकते नहीं
सदैव निष्काम भाव से ईश्वर में मग्न रहते हैं
समता व अविकारीपन की सीख देते हुए