हर धर्म मोहब्बत की सीख देता है
हर मज़हब इंसानियत की सीख देता है
आदमी आदमी को आदमी ही समझे
मंज़र हर शफाक़त की सीख देता है
आईने से निभाने से आईना खुश होता
आईना ही शराफत की सीख देता है
अपनी खामियों को खुद से न छुपाओ
ज़मीर खामियों से अदावत की सीख देता है
इंसानियत की परस्तिश एहतराम बंदगी का
लम्हा लम्हा इनायत की सीख देता है
हर मज़हब इंसानियत की सीख देता है
आदमी आदमी को आदमी ही समझे
मंज़र हर शफाक़त की सीख देता है
आईने से निभाने से आईना खुश होता
आईना ही शराफत की सीख देता है
अपनी खामियों को खुद से न छुपाओ
ज़मीर खामियों से अदावत की सीख देता है
इंसानियत की परस्तिश एहतराम बंदगी का
लम्हा लम्हा इनायत की सीख देता है